शुरुवात एक बात के साथ, जो मैंने कुछ दिनों पहले ही सीखी है । " धार्मिक (Spiritual) होने का अर्थ ,वास्तव में जीवन के उतार-चढ़ाव में ठहराव बनाएं रखने की कला है।"
कह सकते हैं ,की चाहे मनचाही परिस्थिति या संगति ना हो (विसंगति हो), पर उसमें भी संगति बनाकर चलने का अभ्यास प्रकट कर लेना (जहा आपकी परिस्थिति आपको बदल नही देती , आप खुद को जानते हैं , " खुद में ही रमे रहना ")धार्मिक होना है ।
इसलिए धार्मिक क्रियाओं का जीवन पर कैसा प्रभाव पड़ रहा है, उसका ज्ञान होना चाहिए क्योंकि उद्देश्य जीवन में बदलाव लाना है।
पर्वराज :- जैन धर्म में एक पर्व मनाया जाता है, जो सबसे बड़ा पर्व है ,पर्व राज पर्यूषण पर्व (गणेश उत्सव के 10 दिन)। 10 दिनों में 10 अलग-अलग धर्मों की पूजा की जाती है । इसीलिए इसे दसलक्षण महापर्व भी कहते हैं ।इस पर्व की बात मैंने "कहानी :बहुतो में से एक सपना पूरा होने की "ब्लॉग में भी की है।। 10 धर्म :- 1 . उत्तम क्षमा 2. उत्तम मार्दव 3. उत्तम आर्जव 4. उत्तम शौच 5. उत्तम सत्य 6. उत्तम संयम 7. उत्तम तप 8. उत्तम त्याग 9. उत्तम अकिंचन 10.उत्तम ब्रह्मचर्य
आज सबसे पहले धर्म की बात करेंगे ,जो मैंने भी जैन संतो से सीखा है। क्षमा धर्म - पर्यूषण का पहला दिन उत्तम क्षमा ,जब सभी छोटे- बड़े आपस में हाथ जोड़कर या धोक देकर( पैर पड़कर ) एक दूसरे को उत्तम क्षमा कहते हैं। यानी साल भर में जो भी भूल चूक हुई , जिसकी जानकारी हैं (जाने में ) या जिसकी जानकारी नही हैं ( अनजाने में ) सभी के लिए क्षमा मांगी जाती हैं।
"उत्तम क्षमा "(FORGIVENESS) :- यह सिर्फ क्षमा नहीं है बल्कि उत्तम क्षमा है ,जहां क्षमा मांगी भी जाती है और क्षमा किया भी जाता है। ऐसे ही तो क्षमा कोई भी कर देता है , जैसे- 1 स्वार्थ मेंं - जब अपना ही कोई फायदा हो तो व्यक्ति किसी के कड़वे वचन भी सहन कर लेता है ।जैसे दुकानदार किसी ग्राहक की बात सुन लेता है। 2.मजबूरी में - जब सामने वाला व्यक्ति ज्यादा शक्तिशाली हो तब ना चाह कर भी उसे क्षमा करना पड़ता है । जैसे बॉस की बाते सुन लेना पड़ता है। 3.भड़ास के बाद - अपनेे अंदर का सारा गुस्सा निकाल कर फिर कह देना जाओ क्षमा किया। पर यह तीनों ही उत्तम क्षमा नही है ।
"आप शक्ति संपन्न है फिर भी क्रोध आने पर उसे सहन करना और क्षमा पूर्वक किसी शक्तिहीन की बातें सह लेना उत्तम क्षमा है "।
क्षमा की स्थिति का सबसे बड़ा कारण क्रोध होता है , तो क्रोध करें ही नहीं । पर क्रोध का कारण आने पर क्रोध कर भी लिया तो भी कोई बात नहीं, बस उसे कलह ना बनने दें। कलह के कारणों से बचना चाहिए जैसे - 1. "रुचि भेद "- सब की पसंद अलग होती है , अपनी पसंद को दूसरे पर थोपना नही चाहिए ।मर्यादा के अंदर अपनी रुचि की आजादी होनी चाहिए। सामने वाले की रुचि समझ कर वैसा व्यवहार करना सीख ले। 2. आप किसी से "अनुरोध" कर सकते है । अपनी बात पर अड़ेगे तो लड़ेंगे । 3. "गलत फहमी " - बातो मैं स्पष्टता ना होना(miscommunication) से ही गलत फहमी (misunderstanding) हो जाती है । 4. अपने "अहंकार" की पूर्ति से भी कलह होता है।. जब क्रोध भी बोध के साथ होता है , तो कलह नही होता तब सब मित्र होते हैं कोई शत्रु नहीं रहता ।
ऐसे ही यह दसों धर्म "जीवन के विकास "के आधार हैं। जिन्हें विश्व मे सभी को जानने की जरूरत है।क्योंकि यह जीवन को उत्तम बनाकर , ब्रह्म तक पहुचने में सहायक ह ।
उत्तम क्षमा धर्म की बहुत सारी कहानियां है, पर आज मैं अपनी बात बताना चाहूंगी - मैंने गुस्से में उनसे जिनसे बहुत आदर से बात करनी चाहिए, अच्छे से बात नहीं की ।अपना पक्ष खत्म करते ही मुझे इंतजार था ,कि मुझे सामने से भी क्रोध ही मिलेगा पर मेरी सोच के विपरीत सामने से मुझे शांति से कहे गए प्यार भरे शब्द मिले। जिन के बदले मे ,और क्रोध कैसे किया जा सकता है ।अगले ही पल मुझे खुद पर ग्लानि हुई ,की मैंने बिना सोचे कुछ क्यों कहा। ऐसा इसलिए हुआ था क्योंकि, जिनपर मैंने गुस्सा किया उन्होंने मुझे तुरंत क्षमा कर आदर से बात की ,जिससे मेरे पास गुस्से के अलावा भी विकल्प बढ़ गए ,जैसे शांत हो जाने का और अगली बार सोच समझकर कहने का ......
"क्षमा की शक्ति"- कहते हैं "क्षमा वीरस्य भूषणम्" क्योंंकि भगवान के सामने पश्चाताप करना तो आसान है , परंतु जिसे दुख पहुंचाया उसके सामने अपनी गलती मान कर क्षमा मांगना कठिन होता है। और सब भुला कर क्षमा करना और अपना मन साफ रखना भी एक वीर पुरुष ही कर सकता है।
० बदला लेने का मज़ा 1 दिन का होता है क्षमा करने वालों का गौरव हमेशा स्थिर रहता है।
० भाव बदला लेने का नहीं ,सामने वाले को बदलने का होना चाहिए। जैसे सम्राट अशोक जिन्होंने बहुत बड़े युद्ध जीतने के बाद हिंसा देखकर पश्चाताप किया और अपना शासन बढ़ाने के लिए लोगों का मन जीतने का निश्चय किया और बेरी घोष ना करके धम्मघोष का एलान किया।
० मानसिक शांति सिर्फ क्षमा करने से ही मिलती है, जब जलन ,प्रतिशोध और ईर्ष्या की आग बुझ जाती है ,और किसी को नीचे करने का नहीं बल्कि खुद को ऊपर उठाने का भाव आता है।
प्रज्ञा जैन☺ बाकी 9 धर्मों का मतलब क्या होता है अगले ब्लॉग में जरूर पढ़ें।
बहुत ही अच्छे तरीके से क्षमा को बताया हैं,
ReplyDeleteNice one pragya keep it up😊😊
ReplyDeleteNice ...Agar har insan tumhari tarah sochne lage to duniya hi badal jayegi ...but aajkl logo ko dusre ko kasht dene mai khusi milti h ...
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