Hello everyone,
In few days , not only a month but a whole year would come to an end .The one word according to me the whole year can be called, is realization of individualism. A sense of individual existence, which was always present, but we rather ignore it and always find a group existence. Which is fine as Man is a social animal.
यही है सब, अकेले ,अपनी खुशी अपने हाथ में लिए
क्यों कहते हैं सब, कुछ है गलत, कुछ है जरूरी
Finding emotions of happiness and dullness only in social group,and not in self is wrong. where only a particular right manner of living is followed.
खेल सोच का चलता है, सुबह से शाम
कोई सबके साथ भी खुश नहीं ,तो कोई अकेले ही दुखी
कल की खुशी कहीं ,तो कल की सोच कहीं
खुशी का घमंड कैसा ,या नाकामी का गुस्सा कैसा, तुम भी यही हम भी यही
World runs on thinking,which should be modified with time on need.
किसी के होने की खटक कहीं ,तो किसी के ना होने का मलाल कहीं
घड़ी की रफ्तार से परेशानी कहीं ,तो यह वक्त कट क्यों नहीं जाता की परेशानी कहीं
वक्त एक, हालात कई, लोग वही, समय की पलटवार नई
Same time, same people who meet daily be in different circumstances of time.
यह कैसे हो गया ,किसी को पता पड़ता है कहीं?
वक्त गुजारते हो कैसे ,यह देता है पहचान नई
ज़िद्द नहीं करते ,तुम तो समझदार हो ना इसमे तो मिलती है दूसरों को खुशी
बिना नुकसान जिद्द कर, जो पा लिया कुछ उसमें है समझदारी सही
Sometimes are lived by alone, nobody can share it with you. Those are when you know yourself better. And knowing our own self better is very important. Then only your emotions will be in your hand and not others☺
सहना सबको अपना अपना ही पड़ता है
चाह कर भी समय की लेनदेन नहीं होती
यही तो जीवन है ,कुछ रुका नहीं ,सब कुछ चल रहा है। "कुछ कहीं ,कुछ कहीं"।☺
PRAGYA JAIN😊
Very nice Pragya
ReplyDeleteYou are moving a step ahead every time
Thanku ☺
DeleteVery nice piggu ...
ReplyDelete😀 thanku neha
DeleteAwesome 👍 I like 😍♥️
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