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कहानी : बहुतो में से एक सपने के पूरे होने की......

     3 सितंबर 2019 , मेरी नींद सुबह 7 बजे खुली , और मैं लेट हो गयी थी। मम्मी मंदिर जा चुकी थी, तो अब मुझे अकेले ही जाना था। आंखे खुलने के बाद थोड़ी देर मैं वही बैठकर कुछ सोचती रही और फिर एकदम से बहुत जल्दी -जल्दी तैयार होने लगी । तेज़ - तेज़ चलकर मंदिर पहुची , भगवान के दर्शन किये और फिर........, फिर बारी थी मम्मी से बात करने की , थोड़े हिचकिचाते पर पूरे विश्वास के साथ मम्मी से जाकर सब कह दिया ।

मम्मी ने बिना समय लिए कहा  -"नही" .. "बिल्कुल नही" । ऐसे ही मन में कुछ भी आ जाए तो करने लगोगी क्या...।
मैं-         नही , ऐसे ही नही , ये मेरे मन मे  कई सालो से हैं ।
मम्मी -    तोह क्या पूरे दस दिनों के लिए ...?
मैं -         दस दिनों के लिए नही सोचा मैंने । पर तीन दिन ही  सही , शुरू तो करू , फिर देखते हैं।
मम्मी  -    ठीक है। 
मम्मी   -   अच्छा सुन ! ... पानी तो पीयेगी न या वो भी नही ?
मैं -          मुस्कुराते हुए .. , हा पिऊंगी।

         मैं फिर से अंदर गर्भालये ( भगवान के दर्शन करने ) गयी, और बस जिसके लिए हमेशा सोचा था .. वो होना शुरू हो गया था ।

मैं बात कर रही हु , उपवास करने की । ऐसे ही कोई उपवास नही , जैन धर्म होने वाले "पर्युषण पर्व "(गणेश उत्सव के 10 दिन) के उपवास  , जिसमे किसी भी प्रकार का अन्न , कोई पेय पदार्थ या कोई भी फलाहार यानी सब कुछ का त्याग रहता है ।लगातार दस दिनों के लिए । पानी पिया जा सकता है , पर नियम से और हर दिन शाम 6 बजे से अगले दिन सुबह 6 बजे तक पानी का भी त्याग होता है ।जबकि जैन मुनि जो आजीवन ही 24 घंटों में केवल एक बार जल लेते है , उपवास में मुनियो का जल का भी त्याग होता है दस दिनों के लिए ।

 'प्रेरणा '  - हर साल उपवास करने वालो को देखकर , उनमे नियम(संकल्प) लेने का और फिर उसे पूरा करने का विश्वास देखकर , सभी को उनके पुण्यो की अनुमोदना करते देखकर , एक सवाल या एक भावना मेरे मन मे रहती थी ...' क्या मैं कभी ऐसा कुछ कर पाउंगी ?'         जैन मुनि कहते है  , " यदि कोई चीज़ नही भी कर पा रहे हो तो , उसको करने की भावना जरूर भाना चाहिए ।" कभी तो वह जरूर पूरी होती है ।        मैंने भावना भाई पर कभी उसे पूरा करने की कोशिश नही की थी ।                                                       2018 में मन बनाया था पर शुरू ही नही कर पाई ।            '2019 ' में तीन मुनि महाराजो का चातुर्मास हुआ । कुछ दिन हो गए थे पर मैने अभी तक दर्शन नही किये थे । एक दिन गुरु पूर्णिमा पर संघ के बड़े  महाराजजी 8 उपवास के बाद जिसमे वे 8 दिनों से एक ही जगह एक कमरे में साधना कर रहे थे , कमरे से बाहर आये थे । उनके उपवास का 8वा दिन था , और वो बड़े तेज के साथ ,बड़ी ऊर्जा से प्रवचन दे रहे थे , एक मुस्कान थी उनके चेहरे पर । मैने पहली बार दर्शन किये थे , इसलिए मुझे नही पता था कि तीनों में से कौनसे महाराजजी ने उपवास किये है । मुझे लगा जो दोनों मुनि दो किनारो पर बैठे है , उनमे से किसी ने किए होंगे । पर कभी यह नही सोचा कि प्रवचन देने वाले मुनि ने भी तो उपवास किये हो सकते हैं। कोई 8 दिनों की कड़ी तपस्या के बाद इतनी ऊर्जा से प्रवचन कैसे दे सकता हैं ?.. उन्हें "प्रसन्न मनः " भी कहते है और वो उनके चेहरे पर ही दिखता हैं। एक जैन मुनि की साधना की शक्ति से प्रत्यक्ष थी मैं । और ये ही शुरुवात थी मेरी अपने आप पर विश्वास जगाने की ...।

'कहानी दस दिनों की' :- अब मेरे पास बहुत समय था , जिस काम मे सभी का सबसे ज्यादा समय जाता है , मैं उस काम से मुक्त थी ( खाने से ) । सबको पढ़के आश्चर्य होगा पर भूख लगना या खाना देखकर खाने का मन होना ऐसा कुछ "नही" हुआ मेरे साथ । और मुझे विश्वास है, हर कोई जो अपनी शक्ति के अनुसार उपवास करते है , किसी के साथ नही होता होगा । यह भगवान के समक्ष नियम (संकल्प)लेने की शक्ति है।।                                                 सुबह मंदिर जाकर दर्शन , पूजन , दिन में कुछ पढ़ लेना ,और शाम को सामयिक मेरी दिनचर्या बन गए थे ।।         तीन दिन हुए फिर मम्मी ने और घर मे सब ने चिंता से पूछना शुरू कर दिया था :-  ' आज तो पारणा ( अपना मुंह झूठा करके उपवास खत्म करना) कर लोगी न ?             पर मैने कभी हा नही बोला। उपवास मुझे कोई नए नही लग रहे थे , वो मेरा ही एक हिस्सा बन गए थे । शरीर हल्का लग रहा था , जो पूजा या सामयिक सुनती(जो कुछ भी पढ़ रही थी) वो अब ज्यादा समझ आ रहे थे ।                   पर आखिर है तो शरीर ही,  कुछ चौथे - पांचवे दिन से कुछ तकलीफ महसूस हुई - पैरो में खीचन होने लगी थी , रात को नींद नही आती थी । पर महाराजजी भी तो 16 उपवास कर रहे है , साथ दर्शन , प्रवचन , पाठशाला , सामयिक सभी मे उत्साह से हिस्सा लेते हैं। बिना किसी सुविधा , एक लकड़ी के पाटले पर बैठकर साधना करते है , न कोई पंखा न कपड़े है पर कितनी सुंदर मुस्कुराहट रहती है उनके चहरे पर। मैंने सोच लीया था , मैं भी  मुस्कुराते रहूंगी ( आखिर मैं अपना सपना जी रही थी) और एक खुुुश चेहरे के साथ एक selfie   रोज  10 दिनों तक लूंगी ,यही मेरी यादेंं होंगी ।5 दिन  बाद जो नियम से 2-3 बार पानी पी  लिया करती थी वह भी पीने में तकलीफ होने लगी और पानी पीना बहुत कम हो गया । घी से हाथ पैर पर मालिश  की जाती थी और बोलना बहुत कम हो गया था  असली मेहनत मम्मी की हो रही थी एक तो उनका खुद का उपवास  और  पूरे समय  मेरा  ध्यान रखना  और  रात में  मेरे साथ  जागना  । 10 दिनों में  यदि  एक या दो बार हिम्मत कम  पढ़ती भी लगी तो बस एक बात मन में बोल लेती थी -  हे भगवान  बस मेरा  नियम न टूटे  और फिर  शक्ति बंध जाती थी । और बस  ऐसे 10 दिनों का  उपवास  पूरा हुआ  और  11 वे दिन  सभी  व्रतियों  के साथ  भव्य जुलूस  और  हम लगभग  40 लोगों के  त्याग को  एक त्यौहार की तरह  मना कर  हमारा  पारणा हुआ । ऐसे  मेरे कई सपनों में से  एक सपना पूरा हुआ  मुझे लगता है  कि यह तो होना ही था  क्योंकि  जब मेरा जन्म हुआ था ,वह दिन भी  पर्यूषण का  पहला दिन था  । इस सपने के  पूरा होने की खुशी  बहुत ज्यादा थी  इसकी उपमा  ऐसे दी जा सकती है कि  - जैसे  एक बच्चा  अपनी मां के गर्भ में  सुरक्षित महसूस करता है , वैसे ही  मैं  जिनेंद्र भगवान की  संरक्षण में  महसूस कर रही थी  ।और  घर में भी  बहुत उत्साह था  आखिर  मैं घर में पहली थी जिसने उपवास किए थे ।

इन दस दिनों में मैने सीखा :-                                           1  नियम (संकल्प) में बहुत शक्ति होती है । एक बार संकल्प कर लो तो कुछ भी किया जा सकता हैं।।                           2    हमेशा किसी न किसी से inspire होते रहना चाहिए ।इससे हमारी growth  होती रहती है।।                               3    जो चीज़ कर रहे हो , उसे खुशी खुशी करना चाहिए , काम की quality  अच्छी हो जाती है।।        

                                            pragya jain🙂                


Comments

  1. Great story ...In photos mai tumhare face par alag sa tej hai ....syd tumhari success ki khusi face pr reflect ho rhi h.....

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  2. Really very nice ������������.....nothing can be better than living this type of dream...
    This is the achievement of this life and also for next life ��������

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  3. आपके इस कार्य की हम अनुमोदना करते हैं. आपने पिछले वर्ष 10 लक्षण पर्व मैं संयम तप त्याग का पालन कर आपने व्रतों का धारण किया ..वह एक जैन धर्म का अनुयाई ही कर सकता है कि हम सहारना करते हैं बहुत-बहुत बधाई एवं साधुवाद ...������

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  4. Yeah..... Something big is just a lot of consistent small steps.....
    Good work..

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  5. Very inspiring ...keep writing keep going...

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कुछ कही, कुछ कही...

Hello everyone,                          In few days , not only a month but a whole year would come to an end .The one word according to me the whole year can be called, is realization of individualism. A sense of individual existence, which was always present, but we rather ignore it and always find a group existence. Which is fine as Man is a social animal.  यही है सब, अकेले ,अपनी खुशी अपने हाथ में लिए  क्यों कहते हैं सब, कुछ है गलत, कुछ है जरूरी Finding emotions of happiness and dullness only in social group,and not in self is wrong. where only a particular right manner of living is followed. खेल सोच का चलता है, सुबह से शाम  कोई सबके साथ भी खुश नहीं ,तो कोई अकेले ही दुखी कल की खुशी कहीं ,तो कल की सोच कहीं   खुशी का घमंड कैसा ,या  नाकामी का गुस्सा कैसा, तुम भी यही हम भी यही World runs on thinking,which should be modified with time on need.     किसी के होने की खटक कहीं ,तो किसी के ना होने का मलाल कहीं घड़ी की रफ्तार से परेशानी कहीं ,तो यह वक्त कट क्यों नहीं जाता की परेशानी

I DON'T CARE....

     "It sounds  to be about the free souls, Shows ignorance , seems high on passion , Might sometimes rude , but true , "I dont care" , its my attitude .       Listening my soul loud , Keeping my heart out , I wanna be a free bird , I don't care , its my attitude .     Responsibilities on list , passing time on check , I know how to keep souls around happy , If you want me to give damn to shits , I won't , I don't care , its my attitude .     I also have one life, one chance ,time counts down , Trying to tune in with the rythm of life , Trying to love the brained creatures of god, But to the silly things wasting time , I don't care , its my attitude ."   I wrote this lines around a year ago ,and they resembles to the present day. I dont exactly remember the inspiration to write those lines , but it was somewhere to my love for life , conserving the freedom of my thoughts , consious about humans, and trying to find and fill the purpose o